ज्योतिष शास्त्र के अनमोल सूत्र: यहाँ प्रमुख और प्रमाणित सूत्रों का संकलन दिया गया है, जो प्राचीन और आधुनिक ज्योतिष के सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सूत्र कुंडली के विभिन्न भाव, ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभावों को समझने में सहायक हैं।
ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख अनमोल सूत्र
लग्नेश द्वादश भाव में: ऐसे व्यक्ति के शत्रु अधिक होते हैं और उन पर झूठे आरोप लग सकते हैं।
राहु की महादशा में केतु की अंतर्दशा: यह समय विशेष रूप से कष्टदायक और उलझनों से भरा होता है।
धनेश नवम/एकादश भाव में: बाल्यकाल कष्टदायक, लेकिन बाद का जीवन सुखमय होता है।
लग्नेश और धनेश का स्थान परिवर्तन: ऐसे व्यक्ति को धन की कभी कमी नहीं रहती।
सूर्य एकादश भाव में: शत्रु अधिक, लेकिन जातक को उन पर विजय मिलती है।
अष्टमेश पर गुरु की दृष्टि: जातक दीर्घायु होता है।
स्त्री की कुंडली में राहु द्वितीय भाव में: ऐसी स्त्री को विदेश में सुख मिलता है।
शनि उच्च राशि में, मंगल की दृष्टि: जातक में नेतृत्व क्षमता प्रबल होती है।
शुक्र एकादश भाव में: विवाह के बाद अच्छा धन लाभ।
एकादशेश लग्न में: हर 11वें दिन कोई न कोई लाभ।
शुक्र लग्न में: व्यक्ति खुशमिजाज और कला प्रेमी होता है।
शनि लग्न में, गुरु केंद्र में: पैतृक संपत्ति की प्राप्ति।
बुध-चंद्र की युति लग्न/पंचम/नवम में: जातक विद्वान और भविष्यवक्ता।
चंद्रमा पर उच्च ग्रह की दृष्टि: जातक धनवान होता है।
सूर्य के दोनों ओर ग्रह: व्यक्ति तेज बोलने वाला और सफल होता है।
स्थिर लग्न, शुक्र केंद्र में, चंद्र-गुरु त्रिकोण में, शनि दशम भाव में: जातक सुखी, प्रभावशाली, मंत्री या नेता बन सकता है।
ग्रहों के प्रभाव के सूत्र
शुक्र: सुंदरता, ऐश्वर्य, कला, सुख, विवाह, आकर्षण का कारक।
शनि: आयु, कष्ट, रोग, वृद्धावस्था, जड़ता।
राहु: भ्रम, राजनीति, जुआ, झूठ, गुप्त कार्य।
केतु: वैराग्य, आध्यात्म, रहस्य, रोग।
गुरु: ज्ञान, संतान, धन, धर्म।
बुध: बुद्धि, वाणी, शिक्षा, लेखन।
सूर्य: आत्मा, पिता, प्रतिष्ठा, राज्य।
चंद्र: मन, माता, भावनाएं।
मंगल: साहस, ऊर्जा, भूमि, भाई।
अन्य महत्वपूर्ण सूत्र
राहु दशम भाव में: जातक कार्यक्षेत्र में सदा शंका करता है, लेकिन गुप्त कार्यों में प्रगति करता है।
नवम भाव में शुक्र: भाग्यशाली पत्नी की प्राप्ति।
सप्तम भाव में वक्री शुक्र: दो विवाह या गहरे संबंधों का योग।
चतुर्थ भाव में चंद्रमा: मातृ सुख, वाहन, भवन, मानसिक शांति (यदि चंद्रमा बली हो)।
उपरोक्त सूत्र प्रमाणित और अनुभूत हैं, किंतु किसी भी कुंडली का विश्लेषण करते समय संपूर्ण कुंडली, दशा, अंतर्दशा, गोचर आदि का समन्वित अध्ययन आवश्यक है।
1. लग्न और लग्नेश से संबंधित सूत्र
- लग्नेश यदि द्वादश भाव में हो: ऐसे व्यक्ति के शत्रु अधिक होते हैं, और उन पर झूठे आरोप लगने की संभावना रहती है।
- लग्नेश और धनेश का स्थान परिवर्तन: यदि लग्नेश दूसरे भाव में और धनेश लग्न में हो, तो व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती, और कम प्रयास में धन प्राप्ति होती है।
- लग्नेश उच्च का हो: यदि लग्न का स्वामी उच्च राशि में हो, तो व्यक्ति स्वस्थ, समृद्ध और प्रभावशाली होता है।
- लग्न में शुभ ग्रह: यदि लग्न में गुरु, शुक्र या बुध हो, तो व्यक्ति बुद्धिमान, आकर्षक और सुखी जीवन जीता है।
2. धन और समृद्धि से संबंधित सूत्र
- धनेश और एकादशेश का योग: यदि दूसरे भाव का स्वामी (धनेश) और ग्यारहवें भाव का स्वामी (लाभेश) एक साथ हों या दृष्टि संबंध बनाएं, तो व्यक्ति को धन लाभ होता है।
- शुक्र एकादश भाव में: विवाह के बाद व्यक्ति को धन लाभ होता है, और वह समृद्ध जीवन जीता है।
- गुरु का धन भाव पर प्रभाव: यदि गुरु दूसरे या ग्यारहवें भाव को देखता हो, तो धन संचय में वृद्धि होती है।
- धनेश का केंद्र या त्रिकोण में होना: धनेश यदि 1, 4, 5, 7, 9, 10 भावों में हो, तो व्यक्ति को स्थिर धन प्राप्ति होती है।
3. विवाह और दांपत्य जीवन से संबंधित सूत्र
- सप्तमेश और शुक्र का शुभ प्रभाव: यदि सप्तम भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, तो विवाह सुखद और सामंजस्यपूर्ण होता है।
- महिला की कुंडली में सूर्य और शनि: यदि तीसरे भाव में सूर्य और छठे भाव में शनि हो, तो विवाह किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति से होता है।
- शुक्र और मंगल का सप्तम भाव में योग: यह दांपत्य जीवन में उतार-चढ़ाव लेकिन गहरा आकर्षण दर्शाता है।
- सप्तमेश का अष्टम या द्वादश में होना: वैवाहिक जीवन में कठिनाइयों या अलगाव की संभावना बढ़ती है।
4. स्वास्थ्य और आयु से संबंधित सूत्र
- अष्टमेश पर गुरु की दृष्टि: यदि अष्टम भाव के स्वामी पर गुरु की दृष्टि हो, तो व्यक्ति दीर्घायु होता है।
- अष्टम भाव में शनि: यह आयु वृद्धि करता है, लेकिन वाणी दोष के कारण दांपत्य सुख में कमी आ सकती है।
- लग्न में पाप ग्रह: यदि लग्न में मंगल, शनि, राहु या केतु हों, तो स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
- चंद्रमा और सूर्य की स्थिति: यदि चंद्रमा कमजोर हो और सूर्य अष्टम में हो, तो स्वास्थ्य कमजोर रहता है।
5. करियर और व्यवसाय से संबंधित सूत्र
- दशमेश का शुभ प्रभाव: यदि दशम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो, तो करियर में स्थिरता और सफलता मिलती है।
- सूर्य दशम भाव में: व्यक्ति को उच्च पद और सम्मान प्राप्त होता है, लेकिन शत्रु भी बढ़ते हैं।
- बुध का दशम भाव में प्रभाव: व्यक्ति लेखन, व्यापार, या बौद्धिक कार्यों में सफल होता है।
- मंगल का दशम भाव में होना: तकनीकी क्षेत्र, सेना, या इंजीनियरिंग में सफलता मिलती है।
6. ग्रहों के कारकत्व से संबंधित सूत्र
- मंगल का प्रभाव: मंगल भूमि, साहस, छोटे भाई, और युद्ध का कारक है। यदि मंगल शुभ हो, तो ये क्षेत्र सकारात्मक रहते हैं।
- बुध का प्रभाव: बुद्धि, वाणी, और शिक्षा का कारक। बुध यदि केंद्र में हो, तो व्यक्ति विद्वान होता है।
- गुरु का प्रभाव: ज्ञान, संतान, और धन का कारक। गुरु यदि पंचम भाव में हो, तो संतान सुख मिलता है।
- शुक्र का प्रभाव: विवाह, सुख, और ऐश्वर्य का कारक। शुक्र यदि सप्तम भाव में हो, तो वैवाहिक सुख बढ़ता है।
- शनि का प्रभाव: शनि आयु, कष्ट, और आलस्य का कारक है। शनि यदि मारक भाव से संबंधित हो, तो मृत्यु का कारण बन सकता है।
7. योग और दशा से संबंधित सूत्र
- राजयोग: यदि केंद्र और त्रिकोण के स्वामी आपस में संबंध बनाएं, तो राजयोग बनता है, जो समृद्धि और सम्मान देता है।
- मारक दशा: यदि मारक ग्रह (द्वितीय या सप्तम भाव के स्वामी) की दशा हो, तो स्वास्थ्य या जीवन पर खतरा हो सकता है।
- राहु-केतु का प्रभाव: राहु और केतु छाया ग्रह हैं और जिस ग्रह या राशि के साथ हों, उसी के अनुसार फल देते हैं।
- सौम्य ग्रह केंद्र में: बुध, गुरु, शुक्र केंद्र में हों, तो शुभ फल कम देते हैं।
- क्रूर ग्रह केंद्र में: सूर्य, मंगल, शनि केंद्र में हों, तो अशुभ फल कम देते हैं।
8. अन्य महत्वपूर्ण सूत्र
- नियंत्रक ग्रह का प्रभाव: किसी ग्रह का फल तब अधिक शुभ होता है, जब उसका नियंत्रक ग्रह (राशि स्वामी) शुभ स्थिति में हो।
- दृष्टि का समान फल: प्राचीन ग्रंथों में सभी दृष्टियों (जैसे मंगल की चौथी, सातवीं, आठवीं) का फल समान माना गया है।
- कर्क और सिंह लग्न के लिए मंगल: मंगल इन लग्नों के लिए योगकारक होता है, जिससे राजयोग बनता है।
- राहु-केतु केंद्र में: यदि राहु-केतु केंद्र में हों और त्रिकोण स्वामी से युक्त हों, तो योगकारक बनते हैं।
- ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन: बृहद् पराशर होरा शास्त्र, फलदीपिका, और जातक पारिजात में विस्तृत सूत्र उपलब्ध हैं।
ज्योतिष शास्त्र के 100 अनमोल सूत्र
ग्रहों से संबंधित सूत्र
सूर्य आत्मा का कारक है – "सूर्य आत्मा जगत: तस्थुषश्च।"
चंद्र मन का कारक है।
मंगल साहस और ऊर्जा का कारक है।
बुध बुद्धि और वाणी का कारक है।
गुरु ज्ञान, धर्म और वृद्धि का कारक है।
शुक्र कला, प्रेम और भोग का कारक है।
शनि कर्म, दंड और संयम का कारक है।
राहु भ्रम और छल का प्रतीक है।
केतु मोक्ष और वैराग्य का कारक है।
भावों (हाउस) से संबंधित सूत्र
लग्न (पहला भाव) व्यक्ति की आत्मा और शरीर का संकेतक है।
दूसरा भाव धन और वाणी का कारक है।
तीसरा भाव साहस और भाई-बहनों का है।
चौथा भाव माता, सुख और वाहन का कारक है।
पाँचवाँ भाव बुद्धि और संतान का भाव है।
छठा भाव रोग, ऋण और शत्रु का संकेत देता है।
सप्तम भाव जीवनसाथी और विवाह का भाव है।
अष्टम भाव आयु और गूढ़ रहस्यों से जुड़ा है।
नवम भाव भाग्य और धर्म का भाव है।
दशम भाव कर्म और प्रतिष्ठा का है।
एकादश भाव लाभ और इच्छाओं की पूर्ति का भाव है।
द्वादश भाव हानि, व्यय और परलोक का है।
योग और राजयोग
गजकेसरी योग – चंद्र और गुरु केंद्र में हों।
लक्ष्मी योग – लग्नेश और नवमेश का संबंध।
पंचमहापुरुष योग – मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि अपने उच्च या स्वराशि में केंद्र में हों।
राजयोग – केंद्र और त्रिकोण के स्वामियों का संबंध।
चंद्र-मंगल योग – व्यक्ति धनवान होता है।
बुध-शुक्र योग – कला वाणी में निपुणता देता है।
गुरु-चंद्र का संबंध ज्ञानवर्धक होता है।
केदार योग – सभी ग्रह अलग-अलग राशियों में हों।
दशा और गोचर से संबंधित सूत्र
दशा का फल ग्रह की स्थिति और भावाधिपत्य पर निर्भर करता है।
महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा तीनों का समन्वय जरूरी है।
गोचर में शनि का साढ़ेसाती जीवन को चुनौतीपूर्ण बनाती है।
गुरु का गोचर भाग्यवृद्धि करता है।
राहु-केतु गोचर गूढ़ प्रभाव डालते हैं।
नक्षत्र और राशि सूत्र
नक्षत्र 27 होते हैं, जिनमें चंद्र भ्रमण करता है।
प्रत्येक नक्षत्र 13° 20’ के होते हैं।
जन्म नक्षत्र से मानसिक स्थिति का विश्लेषण होता है।
राशि में सूर्य की स्थिति आत्मबल दर्शाती है।
चंद्र की राशि मनोबल और भावनात्मक स्थिति बताती है।
अन्य ज्योतिषीय सूत्र
ग्रह की दृष्टि उसके प्रभाव को दर्शाती है।
मंगल की 4वीं, 7वीं, 8वीं दृष्टि होती है।
शनि की 3वीं, 7वीं, 10वीं दृष्टि होती है।
गुरु की 5वीं, 7वीं, 9वीं दृष्टि शुभ मानी जाती है।
राहु-केतु की दृष्टि भी प्रभावशाली होती है।
नीच ग्रह जब नीचभंग योग बनाए, तो अत्यंत फलदायी हो सकता है।
उच्च ग्रह पूर्ण शक्ति देता है।
ग्रहों का बल (षड्बल) अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चंद्रमा जब कमजोर हो, तो मन अशांत रहता है।
लग्न बलशाली हो तो व्यक्ति आत्मबल से युक्त होता है।
पंचांग के पांच अंग – तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण।
कुंडली दोष और उनके निवारण
51. पितृ दोष नवम भाव और सूर्य से देखा जाता है।
52. चंद्र राहु की युति हो तो 'चांडाल योग' बनता है।
53. कुंडली में गुरु की अशुभ स्थिति गुरु दोष कहलाती है।
54. मंगल दोष तब बनता है जब मंगल 1, 4, 7, 8, 12 भावों में हो।
55. कालसर्प दोष तब बनता है जब सभी ग्रह राहु-केतु के बीच हों।
56. ग्रहण योग तब बनता है जब सूर्य/चंद्र पर राहु/केतु हो।
57. दोष निवारण के लिए मंत्र, रत्न और दान का सहारा लिया जाता है।
58. नीच ग्रह का नीचभंग योग शुभ फल देता है।
59. अशुभ ग्रह का केंद्र में होना शक्ति देता है।
60. दोष शांति के लिए हवन, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप आदि प्रभावी होते हैं।
ग्रह युति और विशेष योग
61. सूर्य-बुध की युति 'बुद्धादित्य योग' कहलाती है।
62. चंद्र-शनि की युति मानसिक तनाव देती है।
63. गुरु-शुक्र युति उच्च ज्ञान व कला देती है।
64. मंगल-शनि की युति दुर्घटनाओं का योग बना सकती है।
65. सूर्य-शनि युति पिता से मतभेद का संकेत देती है।
66. केतु-गुरु युति 'गुरु चांडाल योग' बनाती है।
67. शुक्र-राहु युति विलासिता व अनैतिक आकर्षण का संकेत है।
68. सूर्य-केतु युति अहंकार और भ्रम को जन्म देती है।
69. यदि कोई ग्रह अपने शत्रु की राशि में हो तो उसका फल घटता है।
70. शुभ ग्रहों की युति योगकारक फल देती है।
कुंडली मिलान के सूत्र (विवाह हेतु)
71. गुण मिलान में कुल 36 गुण होते हैं।
72. 18 या अधिक गुण मिलने पर विवाह योग्य माना जाता है।
73. नाड़ी दोष विवाह के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
74. भकूट दोष भी पति-पत्नी के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है।
75. मंगल दोष दोनों में हो तो दोष कट जाता है।
76. चंद्र की स्थिति से मानसिक सामंजस्य देखा जाता है।
77. सप्तम भाव से जीवनसाथी की प्रकृति देखी जाती है।
78. शुक्र पुरुष के लिए पत्नी का कारक है, गुरु स्त्री के लिए पति का।
79. नवांश कुंडली विवाह के स्थायित्व का संकेत देती है।
80. विवाहित जीवन सुखी हो, इसके लिए सप्तम भाव मजबूत होना चाहिए।
रत्न और उपाय
81. सूर्य के लिए माणिक्य (Ruby) धारण करें।
82. चंद्र के लिए मोती (Pearl) उपयुक्त है।
83. मंगल के लिए मूंगा (Coral) धारण करें।
84. बुध के लिए पन्ना (Emerald) श्रेष्ठ है।
85. गुरु के लिए पुखराज (Yellow Sapphire) धारण करें।
86. शुक्र के लिए हीरा (Diamond) उपयुक्त है।
87. शनि के लिए नीलम (Blue Sapphire) धारण करें।
88. राहु के लिए गोमेध (Hessonite) और केतु के लिए लहसुनिया (Cat's Eye)।
89. रत्न धारण से पूर्व कुंडली देखकर ग्रह बल की पुष्टि करनी चाहिए।
90. रत्न शुभ मुहूर्त में, सही धातु में और विधिवत धारण करना चाहिए।
प्रश्न कुंडली (Horary Astrology) सूत्र
91. प्रश्न कुंडली एक विशेष समय पर प्रश्न के समाधान के लिए बनाई जाती है।
92. लग्न और चंद्र का बल यहां अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
93. सवाल जिस भाव से जुड़ा हो, वह भाव बलवान होना चाहिए।
94. सप्तम भाव से पूछने वाले का उद्देश्य देखा जाता है।
95. यदि प्रश्न के समय चंद्र वक्री हो, उत्तर भ्रमित हो सकता है।
96. प्रश्न कुंडली से विवाह, संतान, व्यापार आदि के तत्काल समाधान मिलते हैं।
97. प्रश्न में लग्नेश और प्रश्न भावेश की युति समाधान दर्शाती है।
98. प्रश्न कुंडली में राहु-केतु या शनि से युक्त भाव सावधानी की चेतावनी देते हैं।
99. तारा बल और चंद्र स्थिति भी प्रश्न की पुष्टि करते हैं।
100. योग्य आचार्य द्वारा बनाई गई प्रश्न कुंडली अत्यंत सटीक हो सकती है।
ये 100 अनमोल सूत्र भारतीय वैदिक ज्योतिष के मूल स्तंभ हैं। यदि इनका अध्ययन और अभ्यास गहराई से किया जाए, तो ज्योतिष विद्या में निपुणता प्राप्त की जा सकती है।
भाव और ग्रहों के सामान्य सूत्र
भाव | मुख्य कारक | प्रमुख फल |
---|---|---|
लग्न | आत्मा, शरीर | जीवन की दिशा, स्वास्थ्य |
द्वितीय | धन, वाणी | परिवार, धन, कुटुंब |
तृतीय | पराक्रम | साहस, छोटे भाई-बहन |
चतुर्थ | माता, सुख | माता, वाहन, घर |
पंचम | संतान, विद्या | संतान, शिक्षा, बुद्धि |
षष्ठ | शत्रु, रोग | रोग, कर्ज, शत्रु |
सप्तम | विवाह, साझेदारी | जीवनसाथी, व्यापार |
अष्टम | आयु, रहस्य | दीर्घायु, गुप्त बातें |
नवम | भाग्य, धर्म | भाग्य, गुरु, धर्म |
दशम | कर्म, पेशा | पेशा, समाज में स्थिति |
एकादश | लाभ | आय, इच्छापूर्ति |
द्वादश | व्यय, मोक्ष | खर्च, विदेश यात्रा |